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Saturday, January 28, 2012

''Importance of havingBreakfast"


''Importance of havingBreakfast"
Breakfast

can help prevent strokes, heart attack  andsudden death.


Advice on not to skip breakfast!


Tips for healthyliving... 
For those who always skip breakfast, you should startkicking that habit now!! 
You've  heard many times that "Breakfast is the most important meal of the day.Now,  recent research confirms that one of the worst practices you can develop may be  avoiding breakfast.
Why?
     Because the frequency of heart attack, sudden death,  

and stroke peaks between 6:00a.m. and noon,with the highest incidence  being  between 8: 00a.m. and 10:00a.m.What mechanism within the body could account for  this significant jump in sudden death in the early morning hours? 

We may have an answer

     Platelet, tiny elements in the blood that keep us from bleeding to Death if we get a cut, can clump together inside our arteries  due to cholesterol or laque buildup in the artery lining. It is in the morning hours that platelets become the most activated and tend to form these internal  blood clots at the greatest frequency.


     However, eating even a very light  breakfast prevents the morning platelet activation that is associated with heart

attacks and strokes . 
      Studies performed at Memorial University in  St.Johns, Newfoundland found that eating a light, very low-fat breakfast was critical in modifying the morning platelet activation. Subjects in the study consumed either low-fat or fat-free yogurt, orange juice, fruit, and a source of protein coming from yogurt or fat-free milk.
     so if you skip breakfast, it's important that you change this practice immediately in light of this research.Develop a simple plan to eatcereal, such as oatmeal or Bran Flakes,along with six ounces of grape juice or orange juice , and perhaps a piece of fruit . 
     This simple plan will keep your platelets from sticking  together, keep blood clots from forming, and perhaps head off a potential heart attack or stroke.
So never ever skip breakfast

Friday, January 27, 2012

बसन्त पंचमी"HAPPY BASANT PANCHAMI TO ALL





                         

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वसन्त पंचमी




प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।

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बसन्त पंचमी कथा





सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।

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पर्व का महत्व


वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उ�¤ ता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं

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पौराणिक महत्व


इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बै�¤ ी और चख-चखकर मी�¤ े बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झू�¤ े बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बै�¤ े थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

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ऐतिहासिक महत्व






वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।

कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।

वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवष्त्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिश्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।

गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस �¤ ूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।

इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां क�¤ ोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।



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Basant Panchami Festival

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¤ The Celebrations
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The festival is celebrated with full vivacity and festivity to mark the end of the winters. It is one of the first festivals of the Year and is celebrated all over India. The yellow color has great significance, people wear yellow clothes, offer yellow flowers in worship and put a yellow, turmeric tilak on their forehead. They visit temples and offer prayers to various gods. At home, kesar halva, also yellow in color, is prepared. The yellow flowers of mustard crop covers the entire field in such a way that it seems as if gold is spread over the land glittering with the rays of the sun.
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¤ Worship Goddess-Sarasvati Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org


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The day of Basant Panchami is dedicated to Goddess Sarasvati. Sarasvati is the goddess of learning who bequeaths the greatest wealth to humanity, the wealth of knowledge. Hindu mythology depicts Sarasvati as a pristine lady bedecked with white attire, white flowers and white pearls, sitting on a white lotus, which blooms in a wide stretch of water. The Goddess also holds Veena, a string-instrument, like Sitar, for playing music. The prayer of Sarasvati finally concludes as, "Oh Mother Sarasvati remove the darkness (ignorance) of my mind and bless me with the eternal knowledge."






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Kite flying is the major and most colorful event of this festival. The sky is covered with different colorful fighter kites. The kites (patang in Hindi) are of medium size normally from 1 feet to 4 feet across and made of paper on a frame of bamboo strips. Preparation for this festival start many days earlier and people spend a lot of money on the kites. New clothes are purchased for this festival and many delicious dishes prepared for this particular occasion. sweet yellow rice, flavored with saffron, is prepared for Basant Panchami.
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'Yellow' is the color of the festival and so it dominates everywhere i.e. in the kites, in the clothes, especially in the clothes of ladies, as ladies make a lot of preparation for this particular occasion. There are kites in the sky not only in daytime but also in night. People use searchlights in the night to fly the kites. All the family members gather at one single place, many times on the rooftops, and celebrate this festival.




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SMILE WITH
RAMNATH


G'Morning!!

A doggie story


A doggie story
A man and his dog were walking along a road The man was enjoying the scenery, when it suddenly occurred to him that he was dead. He  remembered dying, and that the dog walking beside him had been dead for years.
He wondered where the road was leading them. 

 
After a while, they came to a high, white stone wall along one side of the road. It looked like fine marble. At the top of a long hill, it  was broken by a tall arch that glowed in the sunlight. 
 
When he was standing before it he saw a magnificent gate in the arch that looked like mother-of-pearl, and the street that led to the gate looked like pure gold. He and the dog walked toward the gate, and as he got closer, he saw a man at a desk to one side. 

When he was close enough, he called out, "Excuse me, where are we?" 
 
"This is Heaven, sir," the man answered. 
 
"Wow! Would you happen to have some water?" the man asked. 
 
"Of course, sir. Come right in, and I'll have some ice water brought right up." The man gestured, and the gate began to open. 
 
"Can my friend," gesturing toward his dog, "come in, too?" the traveler asked. 
 
"I'm sorry, sir, but we don't accept pets." 
 
The man thought a moment and then turned back toward the road and continued the way he had been going with his dog.
 
After another long walk, and at the top of another long hill, he came to a dirt road leading through a farm gate that looked as if it had never been closed . There was no fence. As he approached the gate, he saw a man inside, leaning against a tree and reading a book. 
 
"Excuse me!" he called to the man. "Do you have any water?"
 
"Yeah, sure, there's a p ump over there! , come on in." 
 
"How about my friend here?" the traveler gestured to the dog. 
 
"There should be a bowl by the pump." 
 
They went through the gate, and sure enough, there was an old-fashioned hand pump with a bowl beside it. The traveler filled the water bowl and took a long drink himself, then he gave some to the dog. 
 
When they were full, he and the dog walked back toward the man who was standing by the tree. 
 
"What do you call this place?" the traveler asked. 
 
"This is Heaven," he answered. 
 
"Well, that's confusing," the traveler said. "The man down the road said that was Heaven, too." 
 
"Oh, you mean the place with the gold street and pearly gates? Nope. 
That's hell." 
 
"Doesn't it make you mad for them to use your name like that?" 
 
"No, we're just happy that they screen out the folks who would leave their best friends behind." 
 
Soooo... 
 
Sometimes, we wonder why f riends keep forwarding jokes to us without writing a word. Maybe this will explain. 
 
When you are busy, but still want to keep in touch, guess what you do? 
You forward jokes. 
 
When you have nothing to say, but still want to keep contact, you forward jokes. 
 
When you have something to say, but don't know what, and don't know how, you forward jokes. 

Also to let you know that you are still remembered, you are still important, you are still cared for, guess what you get? 

A forwarded joke. 

So, next time if you get a joke, don't think that you've been sent just another forwarded joke, but that you've been thought of today and your friend on the other end of your computer wanted to send you a smile.

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