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Saturday, March 22, 2014

संस्कार संस्कार संस्कार संस्कार संस्कार

संस्कार संस्कार संस्कार संस्कार संस्कार

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एक विदेशी महिला
विवेकानंद के समीप
आकर बोली: "
मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ "

विवेकानंद बोले: " क्यों?
मुझसे क्यों ?
क्या आप जानते
नहीं की मैं सन्यासी हूँ?"

औरत बोली: "मैं आपके
जैसा ही गौरवशाली,सुशील
और तेजोमयी पुत्र चाहती हूँ और वो तब
ही संभव
होगा जब आप मुझसे
विवाह करेंगे"

विवेकानंद बोले: "हमारी शादी तो संभव
नहीं है, परन्तु
हाँ एक उपाय है"

औरत: क्या?

विवेकानंद बोले "आज से मैं
ही आपका पुत्र बन जाता हूँ,
आज से आप मेरी माँ बन
जाओ...
आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल
जायेगा ।

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औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और
बोली की आप साक्षात् ईश्वर के रूप है ।

इसे कहते है पुरुष 
और ये होता है
पुरुषार्थ...

एक सच्चा पुरुष सच्चा मर्द
वो ही होता है जो हर नारी के
प्रति अपने अन्दर
मातृत्व
की भावना उत्पन्न कर सके। 


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क्या ये हर युग में सम्भव नहीं है ? आज का  युग  पाशविक  वृतियों से भरा पड़ा है। 

संस्कार धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे है ।  आधुनिक विचारधारा बहोत जरुरी है पर संस्कारो से वंचित होना यानि के एक तरह से अपने वंश को नावंश  करने जैसा है । विवेकानंद जैसे कई  लोग आज भी हमारे बिच मौजूद है। पर हम  में से कई लोग इन बातो पर हस्ते है और सोचते है कि ये सब बकवास है ।
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 अगर जरा सा गौर करे तो.अपनी बेटी या बहिन कि शादी करेगे तो सुशिल पुरुष मर्यादा वाले पुरुष के साथ और घर में भी संस्कार चाहेगे तो वो भी शुद्ध!!!!!पर बाहर  इतना  दिखावा क्यों ?

 आज के युगं में किसी भी प्रतिभा को आगे आने के लिए,हम  अक्सर हर एक फील्ड में यही देखते है कि अगर औरत है तो उसे अपने चारित्र्य  को दाव पे लगाना पड़ता है और अगर पुरुष है तो उसे पैसे रुपयो से अपने जमीर को बेचना पड़ता है । ये सब हमारे में से ही कुछ लोगो कि सोच है।  . . . . . .  जो इन बातो पे गौर नहीं करते है पर,भूल जाते है  कि कल उनको किसी न किसी स्वरुप में इन सब का बड़ा भरी भूगतान  देना पड़ेगा ।  जो कुदरत का कानून अटल है ।  देश विदेश में जो अपने असली मूल और संस्कार को कायम रख कर  , आगे बढ़ता है वो इंसान मिसाले तारीफ  है।  हमारे सामने ही कई  ऐसे उदाहरण आम जिंदगी  में भरे पड़े है । 
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पढाई लिखाई करने से इंसान कि सोच खुलती है विचार ऊँचे होते है,पर आज के युग में लोग देखा देखि में ही असलियत से मुह मोड़ रहे है। हालाँकि  सब कुछ जानते है हैम पर उस बात पर विचार नहीं करते है ।  अगर हमारे बच्चे या किसी एक बच्चे को या किसी  इंसान को अगर हम  कुछ उदहारण द्वारा उसके जीवन को मोड़ सके तो उनकी जीवनको हैम नयी दिशा और नया जीवन प्रदान कर सकते है। 

पर उसके पहले हमें खुद के अंदर झांकना पड़ेगा कि ,  हमारे भविष्य  के रचैता हैम खुद हमारे कर्मो से ही है।  

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OM SAIRAM

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