श्राद्ध - एक तर्पण
भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा,धर्मपालन के द्वारा मानव को सुमति करने के उपाय बताती ही है लेकिन मरने के बाद भी, कुछ ऐसे क्रिया कर्म होते है, जिस के बाद भी जीव की सदगति के लिए एक प्रयास कई वर्षो से किया जाता है। जिसे हम आम भाषा में श्राद्ध कहते है।
मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है। पुरे साल में एक महिना खास कर ऐसा दिया जाता है जिस महीने में जो भी हमारे परिवार में मृत होते है उनको एक अर्ध्य श्रद्धा द्वारा दिया जाता है। श्राद्ध का महत्व और विधि विधान हमारे शास्त्र ,धर्म ग्रंथो और पुरानो में भी पाया जाता है।ये हमारे हिन्दू धर्म में ही पाया जाता है। भारत वर्ष में बहोत सी जातिया और धर्म है। श्राद्ध करने के पीछे यह भाव होता है हर इन्सान का की जो हमारे दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत –पुण्य आशीर्वाद लेना है और अपने कुल के सुख
शांति और वैभव को लाना है। हमारे कुल को आगे बढ़ने में और प्रेम और एकता रखने में उनके आशीर्वाद हमारी सहायता करते है। जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके हमारे जीवन को अच्छा सा मक़ाम देने की कोशिश की है , चाहे वो रिश्ता किसी भी स्वरुप में हो।
पर आज ये श्राद्ध का असली महत्व हम भूल गए है , ये संस्कार लुप्त होते जा रहे है। जीवित माता पिता को आज वृधाश्रम में रखा जा रहा है। उनकी मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध करना ये कहा का इंसाफ है ?? आधुनिकता के नाम पर हम नए दौर में प्रवेश कर रहे है, पर जो सही अर्थ में हमारे सुख और दुःख के साथ जुड़े थे वो रिश्ते क्या उन्हें आज हम न्याय दे रहे है ? ....हम लोगो ने जो आधुनिकता का मुखोटा धारण किया है वो क्या इन संस्कारो को आगे जा कर चलने देगा? इस प्रथा और रिवाजो को चलाना केवल अब हमारे हाथ में है ....
हमारी सोच में है ..... केवल एक बात ही हमें याद दिलाती है की जो जिन्दा इंसानों की भावनाओ को समज सकता है , उनकी इज्जत कर सकता है ......जो
जीवित ही अपने बड़ो और बुढो को संभाल सकता है और उनका मान और सम्मान कर सकता है वो ही उनके मृत्यु के बाद उन्हें तर्पण दे सकता है ...और सही अर्थ में वह इन्सान ‘ स्व ‘ के साथ खुश रह सकता है। हमारी आज की सोच को हमें एक ये भी रूप दिखाना है के जो अगर हमें आज की जनरेशन से मान – धर्म – प्रेम – रिवाजो का आचरण कराना है , तो पहले हमें उन्हें ये शिक्षा ----खुद को एक उदाहरण बनकर देना पड़ेगा। नहीं तो जीवन कर्मो का एसा हिसाब किताब है के ‘ जो बोईगे वो ही पाएगे ‘ फिर हमें भी हमारे आने वाली पीढ़ी से ये शिकायत या उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। सही तर्पण यह होगा के हमें हमारे विचारो को आधुनिकता के साथ साथ फॅमिली VALUE,प्रेम, सहनशक्ति और सच और गलत का फर्क दिखा कर देना है।
एक बार जरुर सोचना के सच्चा श्राध् कौनसा है जिससे हमारे पितृ –पितर हम पे नाज़ ले सके और हमें सही मायनो में उनकी दुआए मिले !!!!!
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