Hartalika (Vrat) हरितालिका तीज व्रत :--8thSEPTEMBER2013
Sankalp shakti ka pratik aur akhand saubhagya ki kamna ka param pavan vrat Haritalik Teej Hindu panchang ke anusar Bhadrapad maas ke Shukl paksh ki tritiya tithi ko manaya jata hai. Nari ke saubhagya ki raksha karnewale is vrat ko saubhagyavati striyan apne akshay saubhagya aur such ki lalsa hetu shraddha, lagan aur vishwas ke sath manati hain. Kunvari ladkiyan bhi apne man ke anuroop pati prapt karne ke liye is pavitra pavan vrat ko shraddha aur nishtha purvak manati hain. Har Bhagvan Bholenath ka hi ek naam hai aur chuki Shiv ko pati roop me prapt karne ke liye Maa Parvati ne is vrat ko rakha tha, isliye is pavan vrat ka naam Haritalika Teej rakha gaya. Is vrat ke suavsar par saubhagyavati striya naye laal vastra pahankar, mehandi lagakar, solah shringar karti hai aur shubh muhurt me Bhagvan Shiv aur Maa Parvati Ji ki pooja aarambh karti hai. Is pooja me Shiv-Parvati ki murtiyo ka vidhivat poojan kiya jata hai aur fir Harita
lika Teej ki katha ko suna jata hai. Mata Parvati par suhag ka sara saman chadhaya jata hai. Bhakto me manyat hai ki jo sabhi paapo aur sansarik tapo ko harnewale Haritalika vrat ko vidhi purvak karta hai, uske saubhagya ki raksha svayam Bhagvan Shiv karte hain.
Pauranik kathanusa is pavan vrat ko sabse pahle Raja Himvaan ki putrid Mata Parvati ne Bhagvan Shiv ko pati roop me prapt karne ke liye kiya gaya tha aur unke tap aur aradhana se khush hokar Bhagvan Shiv ne Mata ko patni roop me sveekar kiya tha.
Pauranik kathanusa is pavan vrat ko sabse pahle Raja Himvaan ki putrid Mata Parvati ne Bhagvan Shiv ko pati roop me prapt karne ke liye kiya gaya tha aur unke tap aur aradhana se khush hokar Bhagvan Shiv ne Mata ko patni roop me sveekar kiya tha.
हरितालिका तीज व्रत :-
संकल्प शक्ति का प्रतीक और अखंड सौभाग्य की कामना का परम पावन व्रत हरितालिका तीज हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. नारी के सौभाग्य की रक्षा करनेवाले इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य और सुख की लालसा हेतु श्रद्धा, लगन और विश्वास के साथ मानती हैं. कुवांरी लड़कियां भी अपने मन के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए इस पवित्र पावन व्रत को श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक करती है. हर भगवान भोलेनाथ का ही एक नाम है और चूँकि शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ पार्वती ने इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत का नाम हरितालिका तीज रखा गया. इस व्रत के सुअवसर पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेहंदी लगाकर, सोलह श्रृंगार करती है और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा आरम्भ करती है. इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है और फिर हरितालिका तीज की कथा को सुना जाता है. माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है. भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरनेवाले हरितालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं.
पौराणिक कथानुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और अराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था.
हरितालिका तीज व्रत :-
संकल्प शक्ति का प्रतीक और अखंड सौभाग्य की कामना का परम पावन व्रत हरितालिका तीज हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. नारी के सौभाग्य की रक्षा करनेवाले इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य और सुख की लालसा हेतु श्रद्धा, लगन और विश्वास के साथ मानती हैं. कुवांरी लड़कियां भी अपने मन के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए इस पवित्र पावन व्रत को श्रद्धा और निष्ठा पूर्वक करती है. हर भगवान भोलेनाथ का ही एक नाम है और चूँकि शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ पार्वती ने इस व्रत को रखा था, इसलिए इस पावन व्रत का नाम हरितालिका तीज रखा गया. इस व्रत के सुअवसर पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेहंदी लगाकर, सोलह श्रृंगार करती है और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा आरम्भ करती है. इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है और फिर हरितालिका तीज की कथा को सुना जाता है. माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है. भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरनेवाले हरितालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं.
पौराणिक कथानुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और अराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था.
THE STORY | |
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Realizing the depth of her love and devotion, he agreed to marry her .Since then Parvati has been worshipped as Haritalika. Women and young girls maintain nirjala vrata on these three days, and keep awake all three nights. This is symbolic of the penance which Parvati undertook to get Shiva as her husband. They offer food to Brahmins and young girls. In Maharashtra, women wear green bangles, green clothes, golden bindis and kajal for luck. They distribute beautifully painted coconuts to their female relatives and friends and offer fresh fruit and green vegetables to the goddess as thanks giving. When the rituals are over, they eat a feast of jaggery and rice patolis steamed in banana leaves, a sweet made from coconut milk and rice, and mixed vegetables cooked with spices and coconut milk. Tender coconut water is the treat of this day. |
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JAYA RAMNATH
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