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Monday, October 24, 2011

आओ साईं - बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए

ॐ सांई राम

बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए



श्री साईं बाबा संध्या समय गाँव में जा कर दुकानदारों से भिक्षा में तेल मांगते और मस्जिद में दिए जलाया करते थे | सन 1892 दिवाली के दिन बाबा गाँव के दुकानदारों से तेल मांगने गए लेकिन वाणी (तेल देने वालों) ने तेल देने से मना कर दिया | सभी दुकानदारों ने आपस में यह निश्चित किया था की वह बाबा को भिक्षा में तेल न दे कर अपना महत्व दर्शाएंगे |अहंकार से भरकर उन्होंने यह भी कहा की देखते है बाबा ! आज किस प्रकार मस्जिद में दिए जलाते है ? अत: बाबा को खाली हाथ ही मस्जिद में लौटना पड़ा | कुछ समय पश्चात ही सभी दुकानदार एवं गाँव के कुछ लोग मस्जिद में गए और उन्होंने देखा :-


"बाबा के टीन में पिछले दिन का कुछ तेल था | उन्होंने मस्जिद में रखे घड़े से पानी टीन में डाला और तेल में मिला दिया | उन्होंने वह तेल - मिश्रित पानी अपने मुहं में पीया और पुन: टीन में उलट दिया | वह पानी उन्होंने मस्जिद में रखे दीयों में दाल दिया और बातीं लगा कर दियें जला दिए |





आश्चर्य ! पानी के दिए साडी रात जले | यह देख कर सभी दुकानदारों ने बाबा से क्षमा - याचना की एवं प्रतिदिन उन्हें स्वयं ही तेल देने लगे |"




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Sunday, October 23, 2011

आओ साईं - आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं ... ॐ साईं राम


ॐ सांई राम



ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
मेरी औकात ही क्या है, जो कुछ मैं लिखूँ या मैं बोलूँ ,
ये साईं ने ही खुद ही हैं, उसने खुद लिखवाई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |


सुना है मेने साईं जी, सभी के मन में बसते है,
वो दुःख में साथ रोते है, वो सुख में सँग हस्ते है |
ये हैं जज्बात सुख-दुःख की, ये हैं एहसास सुख दुःख की,
ये साईं ने ही भेजी है, ये मेरे में आई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
सुना है कर्म करने को, प्रभु ज़रिया बनता है,
है करता वो ही सबकुछ है, पर सामने न आता है ||
है मुमकिन हाथ-जीभ मेरी, बनाई हो उसने ज़रिया,
ये लिखने वाला भी वो है, ये बोलने वाला साईं है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |



शुक्रगुजार हु साईं का, मुझे इस काबिल जो समझा,
मैं शुक्रगुजार हु आपका भी, जो इतनी इज्ज़त को बख्शा |
मैं गुनाहगार हु पहले, जो कोई गुस्ताखी हुई हो,
मैं जर्रा आफताब वो है, मैं 'दास' वो मेरा साईं है||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |



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